Couverture de Sumit Kumar Pandey: The Inner Voice

Sumit Kumar Pandey: The Inner Voice

Sumit Kumar Pandey: The Inner Voice

De : Dr. Sumit Kumar Pandey
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Welcome to "The Inner Voice", a transformative podcast hosted by Sumit Kumar Pandey, a seasoned media professional and academic. Tune in for insightful discussions on spirituality, motivation, life lessons, literature, and more. Listen to Sumit's thought-provoking talks and engage with him on "The Inner Voice" podcast, exploring the depths of human experience and inspiring personal growth. About Sumit: Former RJ at Gyanvani FM & All India Radio, with research and journalism background. Currently Assistant Professor at Lovely Professional University. Inspiring conversations ahead!Dr. Sumit Kumar Pandey Philosophie Sciences sociales
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    Épisodes
    • उसको अच्छा नहीं लगूँगा मैं, अगले मौसम नहीं खिलूँगा मैं
      Aug 10 2025

      अपनी मर्ज़ी से कुछ चुनूँगा मैं

      हर अदा पर नहीं मरूँगा मैं


      वो अगर ऐसे देख ले मुझको

      उसको अच्छा नहीं लगूँगा मैं


      बाग़ में दिल नहीं लगा अब के

      अगले मौसम नहीं खिलूँगा मैं


      उससे आगे नहीं निकलना पर

      उसके पीछे नहीं चलूँगा मैं


      कह गए थे वो याद रक्खेंगे

      याद ही तो नहीं रहूँगा मैं

      - Vishal Bagh


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      2 min
    • इक तुम हो कि शोहरत की हवस ही नहीं जाती इक हम हैं कि हर शोर से उकताए हुए हैं
      Aug 4 2025

      सब जिनके लिए झोलियां फैलाए हुए हैं

      वो रंग मेरी आंख के ठुकराए हुए हैं


      इक तुम हो कि शोहरत की हवस ही नहीं जाती

      इक हम हैं कि हर शोर से उकताए हुए हैं


      दो चार सवालात में खुलने के नहीं हम

      ये उक़दे तेरे हाथ के उलझाए हुए हैं


      अब किसके लिए लाए हो ये चांद सितारे

      हम ख़्वाब की दुनिया से निकल आए हुए हैं


      हर बात को बेवजह उदासी पे ना डालो

      हम फूल किसी वजह से कुम्हलाए हुए हैं


      कुछ भी तेरी दुनिया में नया ही नहीं लगता

      लगता है कि पहले भी यहां आए हुए हैं


      है देखने वालों के लिए और ही दुनिया

      जो देख नहीं सकते वो घबराए हुए हैं


      सब दिल से यहां तेरे तरफ़दार नहीं हैं

      कुछ सिर्फ़ मिरे बुग़्ज़ में भी आए हुए हैं


      फ़रीहा नक़वी

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      2 min
    • मेरे दोस्त, तुम मुझसे कुछ भी कह सकते हो…
      Jul 13 2024

      क्या तुम्हारा नगर भी

      दुनिया के तमाम नगरों की तरह

      किसी नदी के पाट पर बसी एक बेचैन आकृति है?


      क्या तुम्हारे शहर में

      जवान सपने रातभर नींद के इंतज़ार में करवट बदलते हैं?


      क्या तुम्हारे शहर के नाईं गानों की धुन पर कैंची चलाते हैं

      और रिक्शेवाले सवारियों से अपनी ख़ुफ़िया बात साझा करते हैं?


      तुम्हारी गली के शोर में

      क्या प्रेम करने वाली स्त्रियों की चीखें घुली हैं?


      क्या तुम्हारे शहर के बच्चे भी अब बच्चे नहीं लगते

      क्या उनकी आँखों में कोई अमूर्त प्रतिशोध पलता है?


      क्या तुम्हारी अलगनी में तौलिये के नीचे अंतर्वस्त्र सूखते हैं?


      क्या कुत्ते अबतक किसी आवाज़ पर चौंकते हैं

      क्या तुम्हारे यहाँ की बिल्लियाँ दुर्बल हो गई हैं

      तुम्हारे घर के बच्चे भैंस के थनों को छूकर अब भी भागते हैं..?


      क्या तुम्हारे घर के बर्तन इतने अलहदा हैं

      कि माँ अचेतन में भी पहचान सकती है..?


      क्या सोते हुए तुम मुट्ठियाँ कस लेते हो

      क्या तुम्हारी आँखों में चित्र देर तक टिकते हैं

      और सपने हर घड़ी बदल जाते हैं…?


      मेरे दोस्त,

      तुम मुझसे कुछ भी कह सकते हो…

      बचपन का कोई अपरिभाष्य संकोच

      उँगलियों की कोई नागवार हरकत

      स्पर्श की कोई घृणित तृष्णा

      आँखों में अटका कोई अलभ्य दृश्य


      मैं सुन रहा हूँ…


      रचयिता: गौरव सिंह

      स्वर: डॉ. सुमित कुमार पाण्डेय

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